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MSP की गारंटी दे दें, हम घर लौट जाएंगे, किसान


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश को संबोधित करते हुए तीन विवादित कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री के इस अचानक लिए फैसले ने किसान आंदोलन के समाप्त होने का रास्ता साफ कर दिया है, लेकिन किसानों को इससे बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ है। दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन में शामिल काबिल सिंह ने केंद्र सरकार के तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ रोष प्रकट करते हुए अपने आप को बेड़ियों में कैद कर लिया था। उन्होंने कसम खाई थी कि जब तक तीन कानून वापस नहीं होंगे वो अपनी बेड़ियां नहीं खोलेंगे। काबिल सिंह कहते हैं, 'पिछले एक साल में मैंने कभी मोदी या सरकार के लिए कुछ नहीं कहा। अब मैं मोदी का शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्हें हमारी बात समझ आ गई। हमें उम्मीद है कि वो MSP पर भी हमारी बात मानेंगे और ये आंदोलन समाप्त हो जाएगा।' वे चाहते हैं कि जब किसान आंदोलन समाप्त हो तो वो मंच पर जाकर किसान नेताओं की मौजूदगी में अपने आप को इस कैद से आजाद करें । काबिल सिंह ने खुद को बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। हाथ-पैर लोहे की जंजीर में बंधे हैं। कमर से बेड़ियां लटक रही हैं। बीते एक साल से वे ऐसे ही बेड़ियों में कैद हैं। काबिल सिंह को खुशी है कि अब वो आजाद हो सकेंगे। अब ऐसा लग रहा है कि किसान आंदोलन अपने अंजाम पर पहुंच रहा है और दिल्ली की सरहदों से किसान अपने तंबु उठा लेंगे, लेकिन बीता एक साल आंदोलनकारी किसानों पर बहुत भारी गुजरा है। इस दौरान काबिल सिंह की 21 साल की बेटी की बीमारी से मौत हो गई, बूढ़े पिता चल बसे और कुछ दिन पहले मां भी गुजर गईं, लेकिन काबिल सिंह ने अपनी बेड़ियां नहीं खोलीं। काबिल कहते हैं, 'मेरी ये बेड़ियां आजाद भारत में किसानों की गुलामी की प्रतीक हैं। भारत भले ही आजाद हो गया, लेकिन किसान गुलाम हैं। जब तक किसान आजाद नहीं होगा, आगे नहीं बढ़ेगा देश भी आगे नहीं बढ़ सकता।'

बहुत महंगी पड़ी है ये लड़ाई हमें

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश को संबोधित करते हुए तीन विवादित कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री के इस अचानक लिए फैसले ने किसान आंदोलन के समाप्त होने का रास्ता साफ कर दिया है, लेकिन किसानों को इससे बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ है। काबिल सिंह कहते हैं, बीते एक साल में हमारा बहुत खर्चा और नुकसान हुआ है। किसान अपना सब कुछ छोड़कर मोर्चे पर बैठे थे। यहां का खर्चा वो खुद उठा रहे थे।

काबिल कहते हैं, 'मेरे पास ढाई एकड़ जमीन है। खर्चे पूरे करने के लिए मुझे कर्ज लेना पड़ा। अब मेरी डेढ़ एकड़ जमीन गिरवी रखी है। ये लड़ाई हमें बहुत महंगी पड़ी है।' लेकिन अभी वे अपना आंदोलन समाप्त करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा ने भी कानूनों को संसद में रद्द किए जाने तक आंदोलन चलाए रखने का फैसला लिया है। आंदोलन का आगे स्वरूप क्या होगा इसे लेकर 27 नवंबर को किसान मोर्चा की बैठक है।

कानून रद्द करवाकर ही वापस जाऊंगा,

रोपड़ से आए रुपिंदर सिंह कहते हैं, 'सरकार के फैसले से हम संतुष्ट हैं। अब सरकार MSP का अधिकार दे देगी तो हम लौट जाएंगे।' वे कहते हैं कि मैं पिछले एक साल से यहीं हूं। कभी घर नहीं गया। बीमार हो गया था तब भी मैं यहीं रहा। मैं घर से कसम खाकर निकला था कि कानून रद्द करवाकर ही वापस जाऊंगा। अब आंदोलन समाप्त होगा तब ही मैं लौटूंगा। मेरा परिवार भी मेरे साथ खड़ा रहा। मेरे बच्चे यहां मिलने आते थे।वे कहते हैं, 'अब मैं अपनी आने वाली पीढ़ी को बता सकूंगा कि मैंने उनके लिए क्या किया। हमारी आने वाली पुश्तें याद करेंगी कि हमारे दादा हमारे अधिकारों के लिए ऐसे सर्दी-गर्मी में बैठे रहे।'

वहीं फतेहगढ़ साहिब से आए भूपिंदर सिंह कहते हैं, 'हम कानून रद्द करने के लिए सरकार का धन्यवाद करते हैं। किसानों ने सर्दी, गर्मी, बरसात सड़कों पर बिताई, अब जितनी जल्दी सरकार सभी मसले हल कर देगी, उतनी जल्दी हम घर लौट जाएंगे।

वे कहते हैं कि सरकार को पता था कि ये कानून गलत हैं फिर वो हमें समझाने में लगे रहे। पूरा साल सरकार ने ऐसे ही निकाल दिया। सरकार को ये कानून बनाने से पहले ही किसानों से राय लेनी चाहिए थी। किसानों के लिए जो भी कानून बनें वो किसानों को भरोसे में लेकर ही बनाया जाए।

भूपिंदर कहते हैं, 'सरकार ने इस मोर्चे को खत्म करने के बहुत जतन किए, लेकिन नाकाम रही। कभी किसानों को आतंकवादी कहा, कभी नक्सल और खालिस्तानी कहा। किसान डटे रहे। हमें नाली के कीड़े तक बोल दिया गया, लेकिन हमारे नेता इस धरने को शांतिपूर्वक चलाए रहे। शांति और सब्र ने ही इस धरने को कामयाब किया है। केंद्रीय कानूनों के खिलाफ सबसे पहले विरोध पंजाब में शुरू हुआ था। दिल्ली कूच करने से पहले पंजाब की किसान जत्थेबंदियों (संगठनों) ने पंजाब में जमीनी स्तर पर आंदोलन चलाया था और कृषि कानूनों का विरोध किया था। तब वो सरकार को कानून पारित करने से नहीं रोक सके थे।

किसान अब आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवार को राहत देने और आंदोलनस्थल पर स्मारक बनाने की मांग भी कर रहे हैं। किसान चाहते हैं कि सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन की याद में स्मारक बनाया जाए। सरकार कानूनों से तो पीछे हट रही है, लेकिन MSP का अधिकार देना आसान नहीं होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार ये कहते रहे थे कि उनकी सरकार तीन कानूनों को वापस नहीं लेगी। अब अचानक उनके पीछे हटने के राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। ऐसे में क्या अब BJP को फायदा हो सकता है, इस पर भूपिंदर सिंह कहते हैं, 'BJP का जो नुकसान होना था हो चुका है। अब चुनावों में बहुत कम समय में है, ऐसे में BJP बहुत कुछ नहीं कर सकेगी। अधिक से अधिक वो प्रचार कर लेगी।'

वहीं किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां कहते हैं, 'BJP के लिए बंद रास्ते तो खुल ही जाएंगे। BJP अब पंजाब में अपना प्रचार करेगी तो किसान उसका विरोध नहीं करेंगे।'

क्या आंदोलन में आगामी चुनावों को लेकर भी कोई चर्चा हुई है। इस पर किसान नेता राजिंद्र सिंह दीपसिंहवाला कहते हैं कि चुनावों में आंदोलन की भूमिका तो रहेगी ही। आंदोलन ने चुनावों को प्रभावित भी किया है। आगामी चुनावों में आंदोलन का क्या स्टैंड होगा, इस पर चर्चा अभी होनी है।

रविवार को सिंघु बॉर्डर पर किसान संगठनों की बैठक हुई जिसमें तीन कानूनों के संसद से रद्द होने तक आंदोलन को चलाए रखने का फैसला लिया गया है। आंदोलन का आगे स्वरूप क्या होगा इसे लेकर अब 27 नवंबर को किसान संगठनों की बैठक होनी है। हालांकि पंजाब की किसान जत्थेबंदियां अब आंदोलन को दिल्ली की सीमाएं से समाप्त करने के मूड में हैं।

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