कांग्रेस नेता राहुल अब संसद से लेकर सड़क तक जातिगत जनगणना और महिला आरक्षण में पिछड़ों के लिए अलग से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. राहुल अब ओबीसी पॉलिटिक्स से बीजेपी को घेरने की उनकी तैयारी है. उन्होंने एमपी के शाजापुर में कहा कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो सबसे पहले जातिगत जनगणना का फैसला होगा.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस बार बीजेपी की पिच पर जाकर बैटिंग करने का फैसला किया है. अंग्रेजी में एक कहावत है ‘ऑफेंस इज द बेस्ट डिफेंस’. कांग्रेस की कभी ऐसी रणनीति नहीं रही है लेकिन तरह-तरह के प्रयोग फेल होने के बाद इस बार राहुल गांधी ने एक और खतरा मोल लेने की तैयारी कर ली है. मध्य प्रदेश की पहली चुनावी रैली में ही उन्होंने कह दिया कि उनके लिए बस एक ही मुद्दा है जातिगत जनगणना. बीजेपी के कमंडल और महिला आरक्षण के दांव से निपटने के लिए राहुल ने अपनी रणनीति तय कर ली है.
‘नफरत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान’ खोलने का वादा करने वाले राहुल अब संसद से लेकर सड़क तक जातिगत जनगणना और महिला आरक्षण में पिछड़ों के लिए अलग से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. ये कभी कांग्रेस का स्टैंड नहीं रहा. पर राहुल इसी बहाने अपनी राजनीतिक लकीर लंबी कर लेना चाहते हैं. ओबीसी पॉलिटिक्स से बीजेपी को घेरने की उनकी तैयारी है. उन्होंने एमपी के शाजापुर में कहा कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो सबसे पहले जातिगत जनगणना का फैसला होगा. वैसे कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने इसी तरह की जनगणना करवाई थी, जिसकी रिपोर्ट अब तक नहीं सार्वजनिक की गई है
बीजेपी के खिलाफ दो मोर्चों पर राहुल की लड़ाई
ताकतवर बीजेपी के खिलाफ राहुल गंधी इस बार दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहे हैं. पहली लड़ाई उनकी खुद की है तो उनकी दूसरी लड़ाई कांग्रेस के लिए है. बीजेपी ने बड़े सुनियोजित तरीके से राहुल गांधी की छवि पप्पू की बना दी. बीजेपी की सोशल मीडिया टीम ने अभियान चला कर राहुल की छवि खराब कर दिया. भारत जोड़ों यात्रा से ही राहुल हारी हुई बाज़ी को पलटने में जी जान से जुटे हैं. वो दिल्ली के करोलबाग जाकर मोटर मैकेनिक से मिलते हैं. फिर हरियाणा में ट्रक ड्राइवरों से मुलाकात करते हैं.
हरियाणा के एक गांव में जाकर उन्होंने किसानों से भेंट की, धान भी रोपे और किसान परिवार को अपने घर खाने पर भी बुलाया. अचानक एक दिन राहुल गांधी कुलियों के बीच पहुंच जाते हैं. ये सब राहुल अपने लिए कर रहे हैं. वो अपनी एक अलग छवि बनाने की कोशिश में है. राजनीति परसेप्शन का खेल है. एक बार जो छवि बन जाती है वही पब्लिक में हमेशा के लिए बनी रहती है. राहुल अपने लिए एक ऐसी इमेज बनाने में लगे हैं जो नेता भी है और एक्टिविस्ट भी. समाज के हर वर्ग के सुख दुख के साथी के तौर पर उन्हें समझा जाए, यही उनकी कोशिश है.
राहुल की इमेज बदलने की कोशिश
फर्नीचर बनाने वालों से राहुल गांधी की मुलाकात का मामला सिर्फ इमेज का नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से राजनितिक है. लकड़ी का काम करने वाले बढ़ई कहे जाते हैं. बढ़ई और लोहार समाज के लोग विश्वकर्मा भी कहे जाते हैं. ये ओबीसी बिरादरी से आते हैं. राहुल की कोशिश ओबीसी पॉलिटिक्स को केंद्र में बनाए रखने की है. ऐसी ही नाकामयाब कोशिश उन्होंने ग्यारह साल पहले भी की थी. यूपी में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार चल रहा था. राहुल तब मंच से अपने पिता राजीव गांधी के सहयोगी सैम पित्रोदा का गुणगान कर रहे थे. उनकी चर्चा करते हुए राहुल ने कहा कि सैम.बढ़ई विश्वकर्मा जाति से हैं. तब राहुल का ये जाति वाला दांव नहीं चला और कांग्रेस का प्रदर्शन यूपी में अच्छा नहीं रहा. लेकिन इस बार राहुल जाति का जिक्र किए बगैर एक लंबी राजनीतिक लकीर खींच लेना चाहते हैं.
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जातिगत जनगणना और ओबीसी एजेंडा
क्षेत्रीय दलों को जाति बिरादरी के नाम पर कोसने वाली कांग्रेस पार्टी अब उसी एजेंडे पर है. राहुल गांधी समझ चुके हैं कि हिंदुस्तान की चुनावी राजनीति का यही सच है. अगर ये सच है तो फिर इसी लाइन पर चला जाए. इसीलिए तो राहुल ने अब जातिगत जनगणना और ओबीसी राजनीति के मुद्दे को ब्रह्म वाक्य बना लिया है. संसद से लेकर सड़क तक अब वो इसके लिए लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं. उत्तर से लेकर दक्षिण के राज्यों में इससे पार्टी को फ़ायदा हो सकता है अगर राहुल अपनी बात जनता तक पहुंचाने में कामयाब रहते हैं. जिस कांग्रेस पार्टी ने कुछ सालों पहले महिला आरक्षण में ओबीसी के लिए अलग से रिजर्वेशन का विरोध किया था वही कांग्रेस अब इसकी मांग कर रही है.
जातिगत जनगणना पर पहले कांग्रेस ने साधी चुप्पी
जब भी जातिगत जनगणना का मुद्दा उठता था, कांग्रेस मौन हो जाया करती थी. उसकी खामोशी ही बहुत कुछ कह देती थी. लेकिन अब ये राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है. एमपी में सरकार बनने पर पार्टी ने जातिगत जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है. इंडिया गठबंधन में इसके लेकर राजनितिक प्रस्ताव पास हो चुका है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसका विरोध कर रही थीं पर राहुल नहीं माने. बाकी सहयोगी पार्टियों की मदद से उन्होंने इसे पास करा ही लिया. अब तो राहुल गांधी जहां भी चुनाव प्रचार पर जा रहे हैं महिला आरक्षण में ओबीसी के लिए आरक्षण का मुद्दा ज़रूर उठाते हैं. समाजवादी पार्टी, आरजेडी और जेडीयू का भी यहीं एजेंडा है. राहुल ने अब इसे इंडिया गठबंधन का एजेंडा बना दिया है.
राहुल का ओबीसी दांव क्या बीजेपी के हिंदुत्व का कवच भेद पाएगा?
अगले साल जनवरी महीने में अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन होना है. हिंदुत्व और राष्ट्रवाद अब भी बीजेपी को खाद पानी मिल रहा है. यूपी और बिहार जैसे राज्यों में ओम प्रकाश राजभर, जीतन राम मांझी, अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद की पार्टियों से गठबंधन कर बीजेपी ने वोटों के लिहाज से मजबूत सामाजिक समीकरण भी बना रखा है. इन सबकी काट के लिए राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ओबीसी राजनीति के भरोसे हो गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को पिछड़ी बिरादरी का बताते हैं. ऐसे में क्या राहुल गांधी का ओबीसी वाला दांव बीजेपी के हिंदुत्व और सामाजिक समीकरण के दोहरे कवच को भेद पाएगा !
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