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अंश और 'कदम' पौधारोपण का सफर जबलपुर से शुरू होकर 26 राज्य तक पहुंचेगा


जबलपुर। प्रदेश में अब नया जंगल बनाना तो मुश्किल है लेकिन हम रहवासी क्षेत्रों में हरे भरे पेड़ पौधे तो लगा ही सकते हैं। इसी सोच के साथ 18 साल में एक लाख से ज्‍यादा पौधों का रोपण कर दिया। कोरोना काल में जब आक्‍सीजन की समस्‍या सामने आई तो नीम के एक लाख पौधे चार साल में लगाने का संकल्‍प लिया गया। जिसमें एक साल के अंदर दस हजार पौधों का रोपण भी कर दिया गया। 17 जुलाई 2004 को एक व्‍यक्ति ने इस अभियान को शुरू किया और आज इसमें 4500 से ज्‍यादा लोग जुड़ गए हैं। विश्‍व पृथ्‍वी दिवस पर हम आपका परिचय कदम संस्‍था से करा रहे हैं। जिसका नाम वर्ष 2009 में लिम्‍का बुक आफ रिकार्ड में दर्ज किया गया। संस्‍था के सदस्‍य प्रतिदिन सुबह 10 बजे पौधारोपण करते हैं।


संस्‍थापक योगेश गनोरे ने बताया कि संस्‍था इन दिनों खास काम कर रही है। जिसे लोग पसंद कर रहे हैं। संस्‍था ने वर्ष 2008 में अंश रोपण की शुरुआत की। जिसके तहत किसी भी परिवार में स्‍वजन की मौत के बाद एक मुट्ठी खारी लाकर एक गमले में मिट्टी में मिलाया जाता है। उस गमले में बीज डाला जाता है जो लगभग 20 दिन में पौधे का रूप ले लेता है। इससे परिवार के लोग अपनों को पौधे के रूप में हमेशा सामने देखते हैं। पूर्व महापौर विश्‍वनाथ दुबे, पूर्व विधानसभा अध्‍यक्ष ईश्‍वरदास रोहाणी, पूर्व महाधिवक्‍ता राजेंद्र तिवारी, पुलवामा हमले के बलिदानी खुड़ावल सिहोरा के अश्विनी कुमार सहित कई परिवारों ने अंश रोपण कर अपनों की याद ताजा किए हुए हैं। वर्ष 2017 में 26 राज्‍यों तक पहुंचे और इस अभियान में दस लाख बच्‍चों को जोड़ा गया। स्‍कूली बच्‍चों को बीज दिया जाता है और वो उसे गमले में लगाते हैं। इसके बाद पौधा तैयार हो जाता है। इससे भी स्‍कूल और कालेज के बच्‍चे पर्यावरण संरक्षण के लिए जुड़ते हैं।

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