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अर्थव्यवस्था’ पर अपनी तरह के एक अनूठे पाठ्यक्रम का हुआ समापन


जबलपुर आज, न केवल भारत देश में, बल्कि पूरे विश्व में, स्थानीय, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पारिस्थितिकी रूप से न्यायसंगत और शांतिपूर्ण जीवन जीने की कला को पुनर्जीवित करने की दिशा में कई प्रयास किये जा रहे हैं। दुर्भाग्य से, नेक इरादों के साथ शुरू किये गए इन प्रयासों में अर्थ-शास्त्रीय पक्ष की अनदेखी करने पर यह सारे प्रयास ‘आम-जन’ केन्द्रित न होकर ‘अभिजात्य वर्ग’ केन्द्रित होते जा रहे हैं। कभी आम लोगों को उपलब्ध रहने वाला ‘ऑर्गैनिक’ भोजन आज उनकी थाली से गायब है। कभी गाँव-गाँव में मिट्टी, चूना, बाँस, आदि ‘इको-फ़्रेंडली’ सामग्रियों से बनने वाले घर आजकल केवल रेसॉर्ट और फार्म हाउस के रूप में ही शोभा बढ़ा रहे हैं। घर-घर उपस्थित ‘आयुर्वेद’ अब एक ‘प्रीमियम’ चिकित्सा पद्धति बनकर रह गया है। वर्तमान की अन्य अर्थव्यवस्थीय संकल्पनाएँ, जैसे वित्तीय स्थिरता, सामाजिक उद्यमिता, राजस्व मॉडल आदि भी आधुनिक अर्थशास्त्र में ही पगी नजर आती हैं। इन संकल्पनाओं ने वैकल्पिक जीवनशैली में कार्यरत लोगों को भी बुरी तरह से मोहित कर रखा है, और अपना स्वयं का एक मायाजाल, भ्रमजाल फैला रखा है, जिसमें लोगों को कोई दूसरा विकल्प दिखाई ही नहीं दे रहा है।

इसी पृष्ठभूमि में ‘अर्थव्यवस्था’ पर चर्चा, विमर्श एवं अध्यापन की दृष्टि से एक 7 दिवसीय पाठ्यक्रम गत 10 नवम्बर से 16 नवम्बर तक इंद्राना ग्राम स्थित *जीविका आश्रम* में आयोजित किया गया। इस पाठ्यक्रम का यह दूसरा संस्करण है। इससे पूर्व गत जनवरी माह में यह पाठ्यक्रम यहाँ पहली बार आयोजित किया गया था। इस बार के पाठ्यक्रम में केरल, बिहार, झारखण्ड, कर्णाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्णाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, आदि प्रांतों से प्रतिभागी शामिल हुये। प्रतिभागियों में अर्थव्यवस्था के विषय में काम कर रहे उच्च शिक्षा के विद्यार्थी, शोधार्थी, आदि सहित बड़ी संख्या में वैकल्पिक व्यवस्था में काम कर रहे लोग शामिल थे। 7 दिवसीय इस पाठ्यक्रम में आधुनिक अर्थव्यवस्था, आधुनिकता का उदय, भारत में बाजार की शुरुआत, अर्थव्यवस्था में बदलाव, अंग्रेजी राज में भारतीय अर्थव्यवस्था और भारत की कारीगर आधारित अर्थव्यवस्था आदि प्रमुख विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई।

पाठ्यक्रम के अंतिम दो दिवसों में महाराष्ट्र शासन के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री वी. गिरिराज जी भी शामिल हुये। श्री गिरिराज महाराष्ट्र एवं भारत सरकार में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, आदि सहित विभिन्न भूमिकाएँ निभा चुके हैं। वर्तमान में वे महाराष्ट्र बाँस संवर्धन फाउंडेशन के चेयरमैन हैं। इस पाठ्यक्रम का समापन आपकी उपस्थिति में हुआ।

पाठ्यक्रम के दौरान देवउठनी एकादशी के दिन ‘तुलसी विवाह’ का आयोजन भी हुआ, जिसमें स्थानीय ग्रामजनों के द्वारा अहीर नृत्य एवं भजन सन्ध्या की प्रस्तुति हुई।

पाठ्यक्रम के आयोजन में अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर पर लम्बे समय से शोध कर रहे दिल्ली के शोधार्थी श्री आर्यमन जैन, श्री श्याम सुंदर, लुधियाना की सुश्री इरिना चीमा और चंडीगढ़ के श्री जतिन्दर मान की प्रमुख भूमिका रही।

गौरतलब हो कि जबलपुर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर इंद्राना ग्राम में प्रकृति के बीच स्थित ‘जीविका आश्रम’ इस तरह के ढेरों प्रयोग करने में देश भर में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। अपनी स्थापना के कुछ ही वर्षों में, जीविका आश्रम अपने इन कार्यक्रमों में देश-विदेश के लोगों को आकर्षित करने में सफल रहा है। जानने योग्य एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जीविका आश्रम के ये सारे कार्यक्रम आपसी सहयोग से ही आयोजित किये जा रहे हैं। जीविका आश्रम, जबलपुर के एक दम्पत्ति श्री आशीष गुप्ता एवं श्रीमति रागिनी गुप्ता की एक पहल है।

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