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कैसी शिक्षा के बच्चों को खुद ही साफ करने होते है झूठे वर्तन,पूँछने पर शिक्षक नहीँ दे पाए कोई जबाब।


m p ,भिंड,मै ये कैसी शिक्षा के बच्चों को खुद ही साफ करने होते है झूठे वर्तन,पूँछने पर शिक्षक नहीँ दे पाए को जबाब।


, पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया, लेकिन ये कैसी शिक्षा है कि पढ़ने वाले छोटे नोनिहालो को खुद ही साफ़ करने होते है झूंठे बर्तन,हर अभिभाबक के दिमाग़ मै ये सवाल दौड़ रहा है! जब कि सरकार स्कूलों में मध्यान्ह भोजन के उपरांत पानी औऱ साफ सफ़ाई के लिए एक रसोइया के लिये 2000 से 4000 रुयये तक एक स्कूल को देती है।

दरअस्ल मामला दबोह के ग्राम चढरोआ के शासकीय प्राथमिक माध्यमिक विद्यालय का है जहाँ भोजन के बाद स्कूल में अध्ययन रत नेनिहालो को अपने छोटे छोटे हाँथो से ख़ुद है धोने पड़ते हैं झूंठे बर्तन,इतना ही नहीं स्कूल में बच्चों को भोजन करते समय पीने के पानी का भी उपलब्ध नही होता,फंदा लगाने पर दौड़ कर जाना पड़ता है 100 मीटर दूरी पर स्थित हेंडपम्प पर पानी पीने के लिए, ऐसे में किसी बच्चे के साथ किसी अनहोनी से इनकार नही किया जा सकता,,? इस सवाल के जबाब में उपस्थित स्कूल शिक्षक मौन रह गए। इस दौरान बच्चों का ये आरोप भी था कि मध्यान्ह भोजन ठेकेदार व स्टाप के कुछ चहेते बच्चों को किचिन में बैठाकर भोजन कराया जाता हैं।

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