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क्या मंगू के सहारे कमलनाथ विन्ध्य फतह कर पायेंगे मूल कांग्रेसियों को मंच से बोलने तक नही दिया गया





मूल कांग्रेसियों को मंच से बोलने तक नही दिया गया,बसपा से आए नेताओ का रहा कब्जा




सफेद शेर की कर्मस्थली मे उनके पौत्र, लोकसभा प्रत्याशी को नहीं मिला बोलने का मौका



पंद्रह साल बाद 2018 मे किसी तरह सत्ता मे आई और महज पंद्रह महीने में ही आपसी गुटबाजी और फ़ूट से सत्ता गंवाने वाली कॉंग्रेस अभी भी कोई सबक नहीं ले रही है।

जहाँ एक ओर पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कॉंग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अपनी सरकार गिरने के लिये विंध्य को दोषी ठहरा चुके हैं वहीं दूसरी ओर उन्हीं के रीवा के दौरे और मनगवां की सभा मे जो नज़ारा दिखा वो कॉंग्रेस के लिये शुभ संकेत नहीं माना जा सकता।

गौरतलब है कि ब्राहमण बाहुल्य आबादी और विशुद्ध जातीय राजनीति वाले विंध्य अंचल मे हमेशा नेतृत्व ब्राह्मणों और ठाकुरों के हांथ मे रहा है, जिन्हें विभिन्न वर्गों का साथ मिलता रहा है।

किन्तु कमलनाथ ने प्रदेश की कमान संभालते ही पार्टी की कमान अपने पुराने सिपहसालार मंगू सरदार को सौंप दी। जिनका जिले में कोई राजनीतिक वजूद नहीं है। उन्ही मंगू सरदार के इशारे पर जहाँ देवतालाब और मनगवां की टिकट बी एस पी की नेताओ को सौंप दी, वहीं त्योंथर की टिकट जनतादल से आये नेता को सौंप दी तो रीवा की टिकट किस तरह से बी जे पी के पूर्व विधायक को सौंप दी गई, यह बात किसी से छुपी नहीं हैं। जिससे काँग्रेस का मूल कार्यकर्ता पार्टी से अलग थलग नजर आया और पूरे प्रदेश मे कॉंग्रेस की लहर होने के बावजूद रीवा मे कॉंग्रेस की दुर्गति हो गई। किन्तु कमलनाथ ने कॉंग्रेस की दुर्दशा का कारण अपने नौसिखिया सिपहसालार को देने के बजाय विंध्य को दोषी ठहरा दिया।

पंद्रह महीने में ही सत्ता गंवाने के बाबजूद कमलनाथ कोई सबक न सीख सके।उनके रीवा प्रवास पर मनगवां की सभा मे मंच पर बी एस पी से आये नेताओं का दबदबा रहा। आश्चर्य की बात तो यह कि सात दशकों तक विन्ध्य के सफेद शेर कहे जाने वाले ,राजनीति के चाणक्य श्रीनिवास तिवारी की कर्मस्थली रहे मनगवां की सभा मे उनको याद तक नहीं किया गया, इतना ही नहीं उनके पोते और रीवा से लोकसभा प्रत्याशी रहे सिद्धार्थ तिवारी को बोलने का मौका भी नहीं दिया गया और सामान्य प्रोटोकॉल का पालन भी नहीं किया गया ।

जबकि वार्ड स्तर के नेता मंच पर विराजमान थे जबकि कार्यकर्ताओं मे पकड़ रखने वाला कोई भी नेता मंचासीन नहीं था।आजादी के बाद से 70 सालों तक जिसने पूरे देश मे अपनी राजनैतिक शैली का लोहा मनवाया ,जिनकी राजनैतिक प्रतिभा का लोहा जय प्रकाश नारायण से लेकर इंदिरा गांधी ने भी माना था, उनकी कर्मस्थली मे उनका नाम न लेना राजनैतिक नौसिखिए पन से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता।क्या यह गुटीय राजनीति की पराकाष्ठा नहीं है?आखिर कॉंग्रेस इस कार्यक्रम के जरिये क्या संदेश देना चाहती है?क्या मंगू सरदार के दम पर ब्राह्मण, ठाकुर बहुलता वाले विंध्य क्षेत्र मे कांग्रेस अपना खोया वजूद वापस पा सकेगी?क्या बिना विंध्य को मजबूत किए कॉंग्रेस प्रदेश मे वापसी का अपना सपना पूरा कर सकेगी ?यह तो भविष्य के गर्त मे है पर यदि यही स्थिति रही तो 2023 मे कॉंग्रेस को पोलिंग एजेंट भी ढूंढे नहीं मिलेंगे और जिले से कॉंग्रेस का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। जिसका सीधा फायदा भाजपा को वाक ओवर के रूप मे मिलेगा।

(यह लेखक की अपनी समीक्षा है)

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