चिंता का विषय: बच्चों के बिगड़ते व्यवहार के पीछे मोबाइल एक बड़ा कारण
जब बच्चे घंटों मोबाइल स्क्रीन के आदी हो जाते हैं और उनका व्यवहार चिड़चिड़ा होने लगता है, तो असली समस्या सामने आती है। ऐसी स्थिति में माता-पिता के पास उन्हें मनोवैज्ञानिक या साइको थैरेपिस्ट के पास ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। शहरों में इस तरह के मामले बड़ी संख्या में देखे जा रहे हैं।
अक्सर, जब मां घर के काम में व्यस्त होती है या पिता अपने ऑफिस के काम में लगे होते हैं, तो बच्चे को बहलाने के लिए उन्हें मोबाइल थमा दिया जाता है। यह आदत धीरे-धीरे बच्चों को मोबाइल की लत में डाल देती है। इसके परिणामस्वरूप, उनका व्यवहार चिड़चिड़ा और आक्रामक हो जाता है, और स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि मनोवैज्ञानिक सहायता की जरूरत पड़ती है।
शहर में इस समस्या के कुछ उदाहरण स्पष्ट रूप से इस खतरे की ओर इशारा करते हैं:
केस-1: माता-पिता पर हमला करने वाला बच्चा: सिटी सेंटर में रहने वाले एक इंजीनियर का पांच वर्षीय बेटा इस समस्या से जूझ रहा है। बचपन से ही उसे मोबाइल की आदत डाली गई, और अब वह इतना आदी हो चुका है कि किसी को मोबाइल छूने नहीं देता। कई बार वह अपने माता-पिता पर भी हमला कर देता है।
केस-2: मोबाइल न मिलने पर हंगामा करने वाला बच्चा: अचलेश्वर रोड पर एक सेलून संचालक का बेटा विहेवियर डिसऑर्डर से गुजर रहा है। मोबाइल की लत इतनी बढ़ गई कि अब मोबाइल न मिलने पर वह हंगामा करता है और खुद को नुकसान पहुंचा लेता है। अब उसके माता-पिता उसे विहेवियर थैरेपी दिलवा रहे हैं।
मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से बच्चों में विहेवियर डिसऑर्डर की समस्या बढ़ती जा रही है। जब किसी वस्तु का जरूरत से ज्यादा उपयोग होता है, तो इसका सीधा असर न्यूरोट्रांसमीटर पर पड़ता है और मस्तिष्क को उसकी आदत पड़ जाती है। जब वह वस्तु नहीं मिलती, तो शरीर प्रतिक्रिया करता है। बच्चों में इस समस्या से निपटने के लिए विहेवियर थैरेपी की आवश्यकता पड़ती है और कुछ गंभीर मामलों में उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की नौबत भी आ सकती है। इसलिए, बच्चों को मोबाइल से दूर रखना बेहद जरूरी है।
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