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नजर भर प्यार की खातिर



बहुत अमीर होते हैं वे लोग, जो नजरों से भी प्यार लुटाते चलते हैं और जिस पर प्यार की एक नजर पड़ जाए, तो उससे खुशनसीब कोई और नहीं होता। इसलिए कहा गया है कि मां सबसे अमीर होती है और उसके आंचल में बच्चे सबसे खुशनसीब। हालांकि यह भी कुदरत का स्याह करिश्मा ही है कि कोई मां प्यार के मामले में कंगाल हो, तो उसका बच्चा जाहिर है, बदनसीब ही होगा। पर ऐसी भी क्या बदनसीबी कि ममता भरी एक नजर के लिए दिल तरस जाए! मां या पिता, दोनों में से कोई तो निगाह भर देख ले, तो चैन आ जाए। सेना में रह चुके सेल्समैन पिता घर से ऐसे निकलते थे कि मानो उनकी सारी जिम्मेदारियां बाहर ही बसती हों और अभिनेत्री मां घर ऐसे लौटती थीं, मानो एक पैर बाहर ही रह गया हो। 

संसाधनों की कोई कमी न थी, लेकिन एक धाय भरोसे बच्चे पल रहे थे। मां और पिता जब कभी मिलते थे, तब पता चलता था कि दुश्मनी क्या होती है। खुलकर लड़ाई होती थी, पास-पड़ोस तक गालियों की गंदगी बरसती थी। जिन हाथों को पुचकारने का धर्म निभाना था, वही हाथ ऐसे उठते थे कि लगता था, पिता पहले विश्व युद्ध से लौटे नहीं हैं, अभी वहीं दो-दो हाथ कर रहे हैं। सुधरने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आते थे। परस्पर प्रेम और समर्पण के अभाव ने माता-पिता को बेरहम बना दिया था और यह आफत बच्चों पर भी समान रूप से बरसती थी। शारीरिक हिंसा से कई गुना ज्यादा मानसिक हिंसा से वह बच्चा मार्लन गुजर रहा था। सोचता रहता कि मां और पिता का ध्यान अपनी ओर कैसे खींचा जाए? ऐसा क्या किया जाए कि उनकी एक निगाह मिल जाए? वे देखने को मजबूर हो जाएं और उन्हें अपनी तंग जिंदगी में अपने बच्चे से भी कुछ खुशी नसीब हो। वैसे मार्लन को पता था कि माता और पिता अपनी-अपनी दुनिया में हर मुमकिन मनमानी करते हुए बहुत खुश हैं। उन्हें बच्चों की परवाह नहीं, लेकिन ऐसा क्या किया जाए कि दो पल वे अपने बच्चों के साथ भी बिताएं?

एक दिन मां घर में बैठी मिल गईं और मार्लन ने अपनी नई योग्यता का प्रदर्शन शुरू किया, ताकि मां नजर भर देख लें। मार्लन ने उस गाय का अभिनय शुरू किया, जो मां को प्यारी थी। मां ने अपने बेटे की हरकतों को नजर उठाकर देखा और उनकी आंखों में खुशी छलक आई। बेटा तो हर्ष से निहाल हो गया। सबसे बड़ी बात थी कि उसने कुछ ऐसा किया, जो मां को पसंद आया और मां ने देखा। उस ग्यारह साल के बच्चे का दिल बाग-बाग हो गया। एक राह मिली कि अभिनय ही वह कला है, जिस पर मां रीझ सकती हैं। गाय का अभिनय कर खुशी मिली, तो चस्का लग गया। फिर कभी घोडे़ का अभिनय, तो कभी किसी पड़ोसी बच्चे का अभिनय, एक सिलसिला चल पड़ा। 

कभी-कभी पिता भी देख लेते थे, लेकिन कभी तारीफ नहीं करते थे। अपने बेटे को हमेशा नाकारा साबित करते थे। साफ कहते थे, तुम जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते। तारीफ तो मां भी नहीं करती थीं, कभी देख भर लेतीं, तो भी कमाल हो जाता। मार्लन को पता चल गया कि ध्यान खींचना है, तो बेहतर से बेहतर अभिनय करो, जान डाल दो, जिसे निभा रहे हो, उस किरदार को जी जाओ। और यह सब किसलिए? बस प्यार भरी एक नजर के लिए। मां और पिता के लिए। खुशी के चंद लम्हों के लिए। ऐसे लम्हे, जिनकी बुनियाद पर दुनिया का सबसे शानदार अभिनेता खड़ा हुआ।

आज मनोरंजन की दुनिया में शायद ही कोई ऐसा होगा, जो अभिनेता मार्लन ब्रैंडो (1924-2004) को नहीं जानता होगा। बड़े परदे पर गॉडफादर और अन्य अनेक किरदारों को साकार कर देने वाले मार्लन ने बचपन की तड़प व त्रासदी को अपना कलात्मक हथियार बना लिया। बिगड़ैल पिता को भले सुधार न सके, लेकिन एक दिन वह आया, जब पिटती हुई मां के पक्ष में जा खड़े हुए और पिता की कनपटी से पिस्तौल लगाकर कहा, ‘देखो, यह आखिरी बार है, अब कभी हाथ मत लगाना, वरना छोड़ूंगा नहीं’। जब कभी परदे पर गुस्सा दिखाने की जरूरत पड़ती, तो मार्लन अपने पिता को याद कर लेते थे और गुस्सा अनायास फट पड़ता था। हालांकि उन्होंने सफल होने के बाद पिता को फिल्म निर्माता बनाया और उनकी जरूरतों का पूरा ध्यान भी रखा, लेकिन पिता की मौत के बाद वह अक्सर हंसते हुए कह देते थे कि वह आदमी कुछ सेकंड के लिए भी सामने आ जाए, तो मैं उसका जबड़ा तोड़ दूंगा। और जिस साल मार्लन को अभिनय के लिए पहला ऑस्कर अवॉर्ड मिला, उसी साल दुनिया से जाते-जाते मां को एहसास हुआ कि बच्चों को पालने में बड़ी कमी रह गई। उन्होंने अफसोस का इजहार किया, लेकिन क्या फायदा? जब जो होना था, हो चुका था।

प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय

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