जबलपुर। नर्मदा की गोद में बसे जबलपुर को 52 ताल-तलैयों का शहर भी कहा जाता है। शहर को नर्मदा के साथ ही परियट, गौर जैसी सहायक नदियों का वरदान मिला है। लेकिन शहर को मिली इन सौगातों को सहेजने में दिशा में ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे। नर्मदा सहित अन्य नदियां जहां तेजी से प्रदूषित हो रहीं है। वहीं 52 ताल-तलैयों में से अब बमुश्किल 36 तालाब ही जीवित बचे हैं। जो अपने अस्तित्व की लड़ाई खुद ही लड़ रहे हैं। यदि जबलपुर के कर्णधार नदी-तालाबों का संरक्षण, संर्वधन करते, गंदे पानी को उपचारित कर उसका पुन:उपयोग करते तो इंदौर की तरह कामयाब होते। 52 ताल-तलैयों के शहर जबलपुर को भी स्वच्छ सर्वेक्षण की परीक्षा में ओडीएफ प्लस-प्लस की तरह वाटर प्लस-प्लस का तमगा हासिल होता। लेकिन शहर की ये विडंबना ही कही जाएगी कि नगर निगम के अधिकारियों ने नदी, तालाब के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च तो कर दिए लेकिन वाटर प्लस-प्लस के हकदार नहीं बन पाए। यदि जिम्मेदार अब भी नहीं चेते तो स्वच्छ सर्वेक्षण 2022 में भी शहर को इस खिताब से हाथ धोना पड़ सकता है।
बजट में प्रविधान तो किया पर अमल नहीं
निवर्तमान नगर सत्ता ने अपने अपने पांच साल के कार्यकाल में नगर निगम सदन की बैठक में पेश किए गए अपने हर सालाना बजट में शहर के तालाबों को संरक्षित करने के लिए पांच-पांच करोड़ रुपये का प्राविधान किया था। इस लिहाज से तालाबों के नाम पर पिछले पांच सालों में तकरीबन 25 करोड़ रुपये खर्च करने का प्राविधान किया गया। लेकिन शहर के गुलौआ, सूपाताल सहित एक-दो अन्य तालाबों को छोड़ दिया जाए तो बाकी ताल-तलैयों का संरक्षण दिखावा ही साबित हुआ। नगर सत्ता 25 में से 20 करोड़ भी तालाबों पर खर्च करती तो करीब 15 तालाबों की तस्वीर कुछ ओर ही होती। लेकिन न तो सत्ता पक्ष ने तालाबों के संरक्षण की दिशा में दृढ़ इच्छा शक्ति से काम किया और न ही विपक्ष ने उसे उसकी जिम्मेदारी याद दिलाई।
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