देवास जिले के बागली और कन्नौद में किसानों द्वारा सरकार को रजिस्टर कराये गए खसरा नंबरों और सैटेलाइट इमेज का मिलान किया गया था, जिसके बाद यह जानकारी सामने आई की किसानों ने गेंहू के पंजीयन के समय जिन खसरा नंबरों को खेत बताया, वहां जांच पड़ताल करने पर डैम, पहाड़ और जंगल निकले हैं। पायलट के तौर पर हुई जांच-पड़ताल में यह खुलासा हुआ है जानकारी सामने आने के बाद खाद्द विभाग ने देवास कलेक्टर चंद्रमौली शुक्ला को पूरी रिपोर्ट भेजकर कहा की मौके पर जाकर मुआयना कराया जाए.। शुक्रवार को रिपोर्ट मिलते ही उन्होंने एसडीएम को जांच-पड़ताल का जिम्मा सौंपा। हैरान करने वाली बात ये है कि जिन स्थानों का जिक्र रिपोर्ट में है उन जगहों को पटवारी और राजस्व निरीक्षक की गिरदावरी रिपोर्ट में भी खेत बताया गया है। इसमें अधिकारियों की मिलीभगत की बात भी सामने आ रही है।
निजी एजेंसी से एक जिले में करवाई गई इस पड़ताल के बाद खाद्द विभाग ने शासन को प्रस्ताव भेजकर कहा है कि कर्नाटक और गुजरात मॉडल की तरह मध्य प्रदेश में भी किसानों द्वारा बताई गई खेती की तमाम जमीनों का सैटेलाइट इमेज के साथ परीक्षण किया जाए. सैटेलाइट परीक्षण पर 20 से 25 करोड़ रुपए का खर्च आने का अनुमान जताया गया है. खाद्द विभाग ने तर्क दिया कि यदि सैटेलाइट इमेज परीक्षण हो जाता है तो इससे 2500 से 3000 करोड़ रुपए का खर्च बचने का अनुमान है. यह वो फसल राशि है जो उन जमीनों पर गेंहू की पैदावार बताकर बेची जाती है, जबकि वास्तव में उन जगहों पर जंगल, पहाड़ व बांध हैं. प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद सभी जिलों में जांच पड़ताल शुरू की जाएगी.
किसानों ने गेंहू के पंजीयन के समय जिन खसरा नंबरों को खेत बताया, वहां जांच पड़ताल करने कर डैम, पहाड़ और जंगल निकले हैं.
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