रोजगार नहीं, तो भत्ते का इंतजाम
- News Writer
- Oct 23, 2021
- 4 min read

जब अप्रैल में लॉकडाउन के बावजूद लाखों लोग सड़कों पर उतर आए, तो वे गुस्सा नहीं दिखा रहे थे। वे सब बस अपने घर जा रहे थे। उन शहरों से नाउम्मीद होकर, जो अब तक उनका बसेरा ही नहीं, एक बेहतर भविष्य का रास्ता भी थे। देश भर में तालाबंदी थी, तो रोजगार पर मार पड़नी ही थी, मगर हालात कितने बिगड़ गए थे, इसका जवाब तब मिला, जब अर्थव्यवस्था को पढ़ने वाली सबसे भरोसेमंद संस्था सीएमआईई ने बताया कि सिर्फ अप्रैल महीने में देश में 12 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए थे। राहत की बात है कि सीएमआईई के ताजा आंकड़ों के अनुसार इसमें तेज सुधार हुआ है। बेरोजगारों की गिनती घटकर जुलाई में एक करोड़ के आसपास रह गई, यानी 11 करोड़ लोग वापस काम पर लग चुके हैं। मगर ध्यान देने की बात है कि यह बेरोजगारी असंगठित क्षेत्र की है। ये दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग हैं, इसीलिए इन्हें वापस काम मिलना उतना मुश्किल नहीं था। मनरेगा पर खर्च हुई रकम भी काम आई है। यानी सरकार के 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का सीधा फायदा यहां दिखाई पड़ा है।
दूसरी तरफ, एक और बुरी खबर है, वह यह कि नौकरी-पेशा लोगों के बेरोजगार होने की रफ्तार तेज हो गई है। अप्रैल से जुलाई के बीच ऐसे 1.90 करोड़ लोगों की नौकरी जा चुकी है, इनमें से 50 लाख लोग तो सिर्फ जुलाई में नौकरी से बाहर हुए हैं। यह चिंता की बात इसलिए है कि दिहाड़ी मजदूरों की तरह इनके लिए दोबारा काम पाना आसान नहीं है। वैकेंसी, विज्ञापन, टेस्ट, इंटरव्यू के सिलसिले से बार-बार गुजरना कई बार आत्मविश्वास को भी तोड़ देता है। और अगर कुछ कर्ज है, तो ईएमआई का दबाव अलग से है।
ऐसे में, कम तनख्वाह वाले बहुत से लोगों के लिए सरकार की तरफ से एक राहत वाली खबर आई है। जो लोग कर्मचारी राज्य बीमा निगम, यानी ईएसआईसी के तहत आते हैं, उन्हें अब तीन महीने के लिए कमाई की आधी रकम बीमा स्कीम से मिलेगी। अभी तक ऐसे लोगों को सिर्फ एक चौथाई रकम ही मिलती थी। ईएसआई के नियमों के तहत जो लोग दो साल से ज्यादा नौकरी में रहकर ईएसआई का प्रीमियम भरते हैं, उन्हें बेरोजगार होने की स्थिति में यह पैसा अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना के तहत मिलता है। अभी तक बेरोजगार होने के 90 दिन बाद ही इस बेरोजगारी भत्ते का दावा किया जा सकता था, लेकिन यह समय घटाकर 30 दिन कर दिया गया है। खासकर कोरोना की मार से बेरोजगार हुए लाखों लोग इसका सहारा ले पाएंगे। ईएसआई स्कीम उन जगहों पर लागू होती है, जहां कम से कम दस लोग काम करते हों और इसके सदस्य वही लोग होते हैं, जिनकी महीने की कमाई 21,000 रुपये से कम हो। यानी एक व्यक्ति को कुल मिलाकर 31,500 रुपये ही मिलेंगे। ईएसआई के पास 78,000 करोड़ रुपये जमा हैं। अनेक व्यापार और उद्योग संगठन सरकार पर दबाव डाल रहे थे कि इस पैसे को निकालकर कामगारों की तनख्वाह देने के लिए इस्तेमाल किया जाए, मगर सरकार इनकार करती रही। उसका तर्क था कि यह रकम कामगारों को बेहद मुसीबत की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता देने के लिए ही निकाली जा सकती है। अब सरकार ने इसकी शर्तों में ढील देकर बहुतों की जिंदगी आसान कर दी है।
यह फैसला ऐसे समय पर हुआ है, जब पूरी दुनिया में बेरोजगारी भत्ते पर बहस छिड़ी हुई है। नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी तक यह तर्क दे चुके हैं कि आने वाले वक्त में सरकार को हर आदमी के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी भत्ते या पेंशन का इंतजाम करना पडे़गा। जिस तरह से मशीनीकरण बढ़ रहा है और रोजगार के मौके कम होते जा रहे हैं, वहां इस मांग को बेतुका कहना भी मुश्किल है।
कोरोना की वजह से भी बहुत से काम-धंधे सिमटते जा रहे हैं। बीते हफ्ते ही एक रिपोर्ट से पता चला कि भारत में बड़ी कंपनियों ने 60 लाख वर्ग फुट, यानी करीब 78 फुटबॉल मैदानों के बराबर जगह खाली की है। यह ‘ए’ ग्रेड, यानी सबसे महंगे व्यावसायिक ऑफिस स्पेस थे, जिसका किराया जगह के हिसाब से 100-200 रुपये फुट या उससे ज्यादा भी होता था और रखरखाव ऊपर से। रोजगार पर अभी खतरा बना रहेगा।
उधर अमेरिका में भी बेरोजगारी भत्ता मांगने वाले नए लोगों की गिनती जुलाई में फिर बढ़कर 11 लाख हो गई है। इससे वहां की अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों पर सवाल उठने लगे हैं। नए आंकडे़ जारी करते वक्त भी अमेरिकी श्रम विभाग ने इनके लिए ‘अप्रत्याशित’ विशेषण इस्तेमाल किया, यानी ये आंकड़े सारी उम्मीदों पर पानी फेरते दिख रहे हैं।
यूरोप में और दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी बेरोजगारी और बेरोजगारी भत्ता इस वक्त के सबसे गंभीर मुद्दे बने हुए हैं। खासकर इसलिए, क्योंकि अभी कोरोना संकट खत्म होना तो दूर, उसके आसार तक नहीं दिख रहे। अब सरकारें परेशान हैं कि इस हाल में बेरोजगारी भत्ता या रोजगार बनाए रखने के लिए कंपनियों को दी जाने वाली मदद वे कब तक जारी रख पाएंगी? कोरोना के मामले फिर बढ़ने से उन पर दबाव बन रहा है कि वे ऐसी स्कीमों को बढ़ाती चलें। अमेरिका के मुकाबले यूरोप में बेरोजगारी की दर कम बढ़ती दिखी, इसकी वजह यही है कि वहां की सरकारों ने कंपनियों को पैसा दिया, ताकि वे वेतन बांट सकें और लोगों को नौकरी से न निकालें। न्यूजीलैंड में तो 50 प्रतिशत से ज्यादा रोजगार इसी भरोसे चल रहा है। फ्रांस में 40 प्रतिशत और पुर्तगाल व जर्मनी में 20 प्रतिशत से ज्यादा रोजगार ऐसी ही मदद पाकर चल रहे हैं। यही वजह है कि इन देशों में अमेरिका जैसी बेरोजगारी नहीं दिखाई पड़ी, लेकिन हर जगह यह अस्थाई योजना थी। मार्च-अप्रैल में उम्मीद जताई जा रही थी कि जुलाई-अगस्त तक कोरोना खत्म हो चुका होगा। पर न कोरोना खत्म होने के आसार दिख रहे हैं और न ही इन अस्थाई योजनाओं को खत्म करने का माहौल बन पा रहा है।
यूरोप के देशों में अब तैयारी है कि नौकरी बचाने पर खर्च होने वाली रकम को बेरोजगारी भत्ता देने पर खर्च किया जाए। इसमें दुविधा इस बात की है कि किसे कितना पैसा दिया जाए? वह रकम क्या होगी, जिसे पाकर इंसान का खर्च भी चल जाए और उसके भीतर नौकरी तलाशने की इच्छा भी बची रहे, क्योंकि ऐसा नहीं हुआ, तो संकट और बढ़ जाएगा। लोगों को बैठकर खाने की आदत पड़ जाएगी। भारत में ऐसी किसी भी योजना या स्कीम के विरोधी काफी समय से यही तर्क देते आए हैं। फैसला सरकार को ही करना पडे़गा, क्योंकि बेरोजगार हुए लोगों को तीन महीने तक आधी तनख्वाह कितना सहारा दे पाएगी? यह सवाल भी जल्दी ही सामने खड़ा हो जाएगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Comments