वह वतन से वफा निभाने का वक्त था
- News Writer
- Oct 23, 2021
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उनकी रगों में जैसे लहू के साथ-साथ अपने मुल्क और अवाम की खिदमत का जज्बा बहता है। नाना बांग्लादेश के पहले सदर रहे, तो मौसी लंबे अरसे से पीएम के ओहदे पर कायम हैं और मां भी ढाका दक्षिण से अवामी लीग की सियासत करती हैं। मगर ट्यूलिप सिद्दीकी का वतन ब्रिटेन है। आज से करीब 38 साल पहले वह वहीं पैदा हुई थीं। शेख-सिद्दीकी परिवार के लिए वे बेहद बुरे दिन थे। अपने देश से दर-बदर होकर उसे एक से दूसरे मुल्क में पनाह लेनी पड़ी थी। दरअसल, 15 अगस्त, 1975 को ढाका में हुए तख्ता पलट में शेख मुजीबुर्रहमान और उनके खानदान के ज्यादातर लोगों व मुलाजिमों को मार डाला गया था। शेख हसीना और उनकी छोटी बहन शेख रेहाना (ट्यूलिप की मां) इसलिए बच गईं, क्योंकि उन दिनों वे दोनों बहनें जर्मनी गई थीं। शेख रेहाना तो तब महज 20 साल की थीं। उनके बांग्लादेश लौटने पर पाबंदी लगा दी गई थी। और कोई भी मुल्क उस वक्त उन्हें शरण देने को तैयार न था। तब इन दोनों बहनों को इंंदिरा गांधी ने भारत में पनाह दी थी।
इसके अगले साल 1976 में शेख रेहाना की शादी शफीक सिद्दीकी से लंदन में हो गई थी। बाद में उन्हें वहां राजनीतिक शरण भी मिल गई। वहीं पर सन 1982 में ट्यूलिप पैदा हुईं। इधर बांग्लादेश में भी हालात शेख मुजीब के खानदान के अनुकूल होने लगे थे। मई 1981 में शेख हसीना भारत से ढाका लौट मुल्क की सियासत में सक्रिय भी हो गई थीं। मगर शेख रेहाना का परिवार तब लंदन में ही था। ट्यूलिप सिद्दीकी शुरू से पढ़ने में काफी जहीन थीं और अपने खानदान की दो औरतों की बहादुरी को देखते-सुनते बड़ी हुईं। उनकी परवरिश तो एक मुस्लिम के तौर पर ही हुई, मगर उनका परिवार ब्रिटेन के बहुसांस्कृतिक परिवेश से खासा प्रभावित था। ट्यूलिप की जेहनीयत पर इसका असर पड़ना ही था। जब वह पंद्रह साल की हुईं, तो नॉर्थ लंदन चली आईं। हैंप्सटीड स्थित रॉयल स्कूल में पढ़ाई के दौरान उन्हें चार ए-लेवल मिला था। इसके बाद अंग्रेजी में ग्रेजुएशन के लिए वह यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन पहुंचीं। उनका अगला पड़ाव था, किंग्स कॉलेज लंदन, जहां से ‘पॉलिटिक्स, पॉलिसी ऐंड गवर्नमेंट’ में उन्होंने मास्टर्स की डिग्री हासिल की। अब तक साफ हो गया था कि राजनीति में उनकी गहरी दिलचस्पी बन रही है। हालांकि, मां अपने पिता और भाइयों के साथ जो कुछ दर्दनाक बीता था, और बांग्लादेश में बड़ी बहन के साथ जो कुछ उन दिनों हो रहा था, उसे लेकर कभी-कभी काफी चिंतित हो जाती थीं। लेकिन ट्यूलिप लेबर पार्टी की सदस्यता पहले ही ले चुकी थीं। दरअसल, इस फैसले तक पहुंचने में पिता की बीमारी ने एक खास रोल निभाया। शफीक सिद्दीकी पक्षाघात की वजह से अपंग हो गए थे। करीब पांच साल तक तो कुछ भी नहीं बोल पाए। उस वक्त नेशनल हेल्थ सर्विस से उनके उपचार में काफी मदद मिली थी। ट्यूलिप इससे काफी प्रभावित हुई थीं।
उसके बाद तो मानवाधिकारों को लेकर वह खासा सक्रिय और मुखर रहीं। उन्होंने एमनेस्टी इंटरनेशनल और सेव द चिल्ड्रन जैसी संस्थाओं के लिए भी काम किया। इस तरह के उनके कामों को स्थानीय लोगों ने काफी गंभीरता से लिया। हालांकि, साल 2006 के स्थानीय निकाय चुनाव में ट्यूलिप नाकाम रहीं, लेकिन उनकी जनसेवा की शिद्दत पर साल 2010 में कैमडेन कौंसिल के वोटरों ने मुहर लगा ही दी। ट्यूलिप सिद्दीकी कौंसिलर चुनी जाने वाली बांग्लादेशी मूल की पहली महिला हैं।
साल 2013 ट्यूलिप की जिंदगी में काफी खूबसूरत क्षण लेकर आया। इसी साल उन्होंने क्रिश्चियन विलियम पर्सी के साथ आगे का जीवन जीने का फैसला किया, और 2013 में ही तमाम दुष्प्रचारों के बावजूद लेबर पार्टी ने आगामी संसदीय चुनाव के लिए उन्हें अपना उम्मीदवार चुना। साल 2015 में ब्रिटेन में आम चुनाव हुए और हैंप्सटीड ऐंड किलबर्न संसदीय सीट से ट्यूलिप भारी मतों के अंतर से चुनी गईं। दिसंबर 2019 के आम चुनाव में भी लोगों ने उन पर भरोसा जताते हुए दोबारा पार्लियामेंट भेजा। और यह सब यूं ही नहीं है। पिछले साल जनवरी में उन्होंने डॉक्टरों की हिदायत के बावजूद अपने प्रसव-ऑपरेशन को दो दिन के लिए टाल दिया था, क्योंकि देश की संसद ऐतिहासिक ब्रेग्जिट के लिए मतदान करने जा रही थी और एक-एक वोट बेहद अहम था। ट्यूलिप व्हील चेयर पर संसद पहुंचीं और अपना वोट डाला। डॉक्टर उनके बढ़ते शुगर लेवल को लेकर बेहद चिंतित थे, मगर ट्यूलिप को तो अपने वतन से वफादारी निभानी थी। लोकतांत्रिक मूल्यों व वैचारिक आजादी की सच्ची पैरोकार ट्यूलिप कहती हैं, ‘मैं मुसलमान हूं और मेरे पति ईसाई। हम दोनों अपनी-अपनी संस्कृतियों को जीते हैं, और एक-दूसरे की रवायतों में भरपूर दिलचस्पी भी लेते हैं। हम अपनी बेटी को दोनों ही संस्कृतियों की शिक्षा देते हैं। और जब वह बड़ी होगी, तो यह उसका अख्तियार होगा कि अपनी पसंद से धर्म चुने।’ प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह
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