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शराब बंदी का राजनीतिक दल कर रही दिखावा ,सभी दल शराब के दलदल मे शामिल



प्रदेश के युवाओ में बढ़ते नशे की प्रवृत्ति युवाओं के भविष्य के लिए घातक बनती जा रही है। नशाखोरी ने पूरी तरह से प्रदेश को अपने गिरफ्त में ले लिया है। युवा विभिन्न तरह के नशीले पदार्थों के सेवन के आदी हो गये हैं। जिसमें युवाओ मे शराब की बढ़ती लत उन्हें दीमक की तरह खोखला करती जा रही है। किन्तु जिम्मेदार अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने मे व्यस्त है। किसी का इस ओर ध्यान ही नही जाती है, उनकी करनी कथनी मे अन्तर है, कहते कुछ हैं करते कुछ हैं। राजनैतिक दल सिर्फ शराब बंदी का दिखावा करते हैं, उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति का आभाव है। या यू कहे की सरकार का फयदा शराब दुकानों से अधिक होता है इस लिए इतने नशीले पदार्थ असानी से मिल जाते है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कॉंग्रेस अपना सदस्यता अभियान चला रही है, इसके लिए वह सदस्यों से घोषणा पत्र भी भरवा रही है। घोषणा पत्र के बिंदु क्रमांक -3 मे यह घोषणा की जा रही है कि

"अपने को मादक पेयों और नशीले पदार्थों से दूर रखता हूँ "

जब कि सच्चाई य़ह है कि कॉंग्रेस का एक सफेद पोश ही जिले का सबसे बड़ा शराब का ठेकेदार रहा है। बीते वर्ष पूरे जिले मे उसकी शराब दुकाने थी, उसके गुर्गे साल भर तांडव करते रहे। इस वित्तीय वर्ष मे वहीं सफेद पोश उमरिया जिले का शराब किंग बन गया। किन्तु प्रदेश मे कॉंग्रेस के मुखिया जनता को नासमझ समझ कर गुमराह कर रहे हैं।

वही दूसरे दल भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री शराब दुकानों मे पत्थर मारती हैं, किन्तु मुख्यमंत्री से मिलने के बाद चुप हो जाती हैं। जिले के एक युवा विधायक जहां नई शराब दुकानों को खोलने के ख़िलाफ़ जहां धरना देते हैं ,वहीं उन्हीं की पार्टी की सरकार हर मोहल्ले और गली मे शराब दुकान खोलने का लाइसेंस जारी करती है। कोरोना काल मे जब दूध की दुकाने बंद थी तब भी शराब की दुकान खोलने का फरमान था। सरकारें चाहती हैं कि लोग शराब पीकर मस्त रहें और रोजगार, चिकित्सा, शिक्षा, मंहगाई पर सवाल न उठाएं। सरकारें शराब के टैक्स से मुफ्त मे अनाज बाँटकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करती हैंऔर देश के लोगों को अकर्मण्य बना रही हैं। यह हाल किसी एक दल का नहीं बल्कि सभी दल शराब के दलदल मे डूबे हुए हैं।

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